मध्यकालीन भारत भाग - 2 | Madhyakalin Bharat Part - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहना चाहता था क्योंकि इसका अर्थ सेना को दो भागों में विभक्त करना होता । बहादुरशाहू जो हुमायूँ की ही आयु का था एक योग्य और महत्वाकांक्षी शासक था । वह 1526 में गहदी पर बैठा था और उसने मालवा पर आक्रमण करके उसे जीत लिया था । उसके बाद वह राजस्थान की ओर छूमा और चित्तौड़ पर घेरा डाल दिया । जल्दी ही उसने राजपूत सनिकों की मिट्टी पलीत कर दी। बाद की किवदंतियों के अनुसार साँगा की विधवा रानी करणावती ने हुमायूँ के पास राखी भेजी और उसकी मदद माँगी और हुमायूँ ने वीरता से उसका जवाब दिया । हालाँकि इस कहानी को सच नहीं माना जा सकता लेकिन हुमायूँ परिस्थिति पर नज़र रखने के लिए आगरा से ग्वालियर आ गया । मुग़ल-हस्तक्षेंप के भय के कारण बहादुरशाहू ने राणा से संधि कर ली और काफ़ी धन-दौलत लेकर किला उसके हाथों में छोड़ दिया । अगले डेढ़ साल हुमार्यू दिल्‍ली के निकट द्वीनपनाह नाम. का तयाः शहर बनवाने में व्यस्त रहा । इस दौरान उसने भव्य भोजों और मेलों का आयोजन किया । इन कार्यों में मूल्यवान समय व्यर्थ करने का दोष हुमायूँ पर लगाया जाता है । इस बीच पूर्वे में शेरशाह अपनी शक्ति बढ़ाने में व्यस्त था । यह भी कहा जाता है कि हुमायूँ अफ़ीम का आदी होने के कारण आलसी था । लेकिन इनमें से किसी भी दोषारोपण का कोई विशेष आधार नहीं है । बाबर दाराब छोड़ने के बाद अफ़ीम लेता रहा था । हुमायूँ दाराब के बदले में या उसके साथ कभी-कभी अफीम खाता था । अनेक सरदार भी ऐसा करते थे । लेकिन बाबर या हुमायूँ में से कोई भी अफ़ीम का आदी नहीं था । दीनपनाह के निर्माण का उद्देश्य मित्र और दोनों को प्रभावित करना था । बहादुरशाह की ओर से . आगरे पर खतरा पैदा होने की स्थिति में यह नया शहूर दूसरी राजधानी के रूप में भी काम था सकता था | बहादुरशाह ने इस बीच अजमेर को जीत लिया था और पूर्वी राजस्थान को रौंद डाला था । बहादुरशाह ने हुमायूँ को और भी बड़ी चुनौती दी । वह इब्राहीम लोदी के सम्बन्धियों को अपने यहाँ शरण देकर ही सन्तुष्ट नहीं हुआ । उसने हुमायूँ के उन मध्यकालीन भारत सम्बन्धियों का भी अपने दरबार में स्वागत किया जो असफल विद्रोह के बाद जेलों में डाल दिए गए थे और बाद में वहाँ से भाग निकले थे । और फिर बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर फिर आक्रमण कर दिया था । साथ ही साथ उसने इब्राहींम लोदी के चचेरे भाई तातारखाँ को सिपाही और हथियार दिए ताकि. बहू 40 000 की फ़ौज लेकर आगरा पर आक्रमण कर सके । उत्तर और पु्व में भी हमायूँ का ध्यान बंटाने की योजना थी । तातारखाँ की चुनौती को हुमायूँ ने जल्दी ही समाप्त कर दिया । मुगल सेना के आगमन पर अफ़मान सेना तिंतर-बितर हो गई। तातारखाँ की छोटी-सी सेना हार गई और तातारखाँ स्वयं मारा गया । बहादुरशाह की ओर से आने वाले खतरे को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए दूंढ़ निश्चय हुमायूँ ने मालवा पर आक्रमण कर दिया । वह धीमी गति और सावधानी से आगे बढ़ा और चित्तौड़ तथा मॉडू के मध्य के एक स्थान पर मोर्चा बाँध लिया । इस प्रकार उसने बहादुरशाह को मालवा से खदेड़ दिया । बहादुरशाह ने जल्दी ही चिंततौड़ को समपंण के लिए विवश कर दिया बयोंकि उसके पास बढ़िया तोपखाना था जिसका संचालन ऑटोमन निशांची रूमीस्ाँ कर रहा था । कहा जाता है कि हुमायूँ ने धार्मिक आधार पर चित्तौड़ की मदद करने से इनकार कर दिया था । लेकिन उस समय मेवाड़ आन्तरिक समस्याओं में व्यस्त था और हुमार्यू के विचार से मेवाड़ की मित्नता सेनिक दृष्टि से सीमित महत्व की थी । इसके बाद जो संघर्ष हुआ उसमें हुमायूँ ने काफी संन्य कौशल और व्यक्तिगत वीरता का परिचय दिया । बहादुर शाह को पुग़ल सेना का सामना करने का साहस नहीं हुआ । वह अपनी क़िलेव्दी छोड़कर माँडू भाग गया। उसने अपनी तोपों को तो छोड़ दिया लेकिन बेशक्रीमती साज़ो-सामान पीछे छोड़ गया । हुमायूँ ने तेज़ी से उसका पीछा किया । उसने थोड़े से साथियों के साथ माँडू के किले की दीवार फॉर इस प्रकार किले में प्रवेश करने वालों में वह स्वयं पाँचवां आदमी था । बहाइुरशाह माँड से चम्पानेर भागा और यहाँ से अहमदाबाद और अन्तत काठियावाड़ भाग गया । इस प्रकार मालवा और गुजरात के समुद्ध प्रदेश और माँडू तथा चम्पानेर के क़िलों में एकत्त




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