राधास्वामी मत दर्शन | Radhaswami Mat Darshan Jo Mutlashiyo Ke Liye
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.32 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand) श्सली परमसार्थी कास्वाई क्या हो सक्ती है ॥ 1१३
यानी रूह-तन जो पांच तन्त का बना हुआ है उस
का भंडार यानी पांच तत्त की रचना आंख से नजराइ
पड़ती है । इसी भंडार से तन का मसाला लिया जाता है
उौर मर जाने पर वह मसाला इसी भंडार में समा जाता
है। इसी तौर पर मन का भी भंडार है जिसको ब्रह्मांड
कहते हैं। ऐसे ही सरत यानी रूह के भंडार को मसालिके
कुल कहते हैं। यह देखने में आता है कि तन सरासर
गुलामी मन की करता है यानी जो कुछ सन 'चाहता
है तन से कार्रवाई कराता है और यह मन और तन
दोनों मोहताज हर वक्त सुरत यानी रूह की धार के
हैं यानी अगर यह घार खिंच जावे तो मन और तन
दोनों बेकार हो जाते हैं गोयाकि रूह हो की शक्तो
के वसीले से मन व तन दोनों का काम 'बलता
है। यह भी देखा जाता है कि जिस वक्त से रूह तन
में प्रवेश करती है उस वक्त से रचना की सब जड़
शक्तियां गर्मी बिजली बगैर: और सब तत्त हवा
पानी. दगेर: उसकी मातहती में काम करते हैं और
जिस्म कों तैयारी व श्ड्ार में पूरी इमदाद देते हैं
चाहे. जिस्म इन्सान का हो या हैवान का या दरख
वंगेरः का । इस से यह. नतीजा . निकलता है कि सुरत
यानी चेतन शकती ही सवापरि शक्ती इस रचना में
है जौर कुल्न मालिक जो सब सुरतशबितियों के भंडार
User Reviews
No Reviews | Add Yours...