राधास्वामी मत दर्शन | Radhaswami Mat Darshan Jo Mutlashiyo Ke Liye

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Radhaswami Mat Darshan Jo Mutlashiyo Ke Liye by राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust

Add Infomation AboutRadhaswami Trust

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्सली परमसार्थी कास्वाई क्या हो सक्ती है ॥ 1१३ यानी रूह-तन जो पांच तन्त का बना हुआ है उस का भंडार यानी पांच तत्त की रचना आंख से नजराइ पड़ती है । इसी भंडार से तन का मसाला लिया जाता है उौर मर जाने पर वह मसाला इसी भंडार में समा जाता है। इसी तौर पर मन का भी भंडार है जिसको ब्रह्मांड कहते हैं। ऐसे ही सरत यानी रूह के भंडार को मसालिके कुल कहते हैं। यह देखने में आता है कि तन सरासर गुलामी मन की करता है यानी जो कुछ सन 'चाहता है तन से कार्रवाई कराता है और यह मन और तन दोनों मोहताज हर वक्त सुरत यानी रूह की धार के हैं यानी अगर यह घार खिंच जावे तो मन और तन दोनों बेकार हो जाते हैं गोयाकि रूह हो की शक्तो के वसीले से मन व तन दोनों का काम 'बलता है। यह भी देखा जाता है कि जिस वक्त से रूह तन में प्रवेश करती है उस वक्त से रचना की सब जड़ शक्तियां गर्मी बिजली बगैर: और सब तत्त हवा पानी. दगेर: उसकी मातहती में काम करते हैं और जिस्म कों तैयारी व श्ड्ार में पूरी इमदाद देते हैं चाहे. जिस्म इन्सान का हो या हैवान का या दरख वंगेरः का । इस से यह. नतीजा . निकलता है कि सुरत यानी चेतन शकती ही सवापरि शक्‍ती इस रचना में है जौर कुल्न मालिक जो सब सुरतशबितियों के भंडार




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now