हरिवंश्पुरान | Harivansh Puranam Ac 6534

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) प्रतभद इन संक्षाओंके विषयमें कुछ मतभेद भी हैं, जिनका आचार इन्द्रनन्दिने “ अन्‍्ये जगुः ? कहकर उल्लेख किया है / । कुछके मतसे जो गुहाओंसे अयि ये, उन नन्दि , जो अरोकवनस अयि ये उन्हें 'देष”, जो पंचस्तपोंसे आये थे उन्हें 'सेन!, जो सेमरके नीचेसे भाये थे उन्हें 'बीर” और जो नागके सर वक्षोंके नौचेस आये थे उन्हें ' भद्र ! संज्ञा दी गई | कुछके मतसे गुद्दानिवासी “नन्दिः, अशोकवन- निवासी “ देव ”, पंचस्तृूपवाले “सेन ”, सेमरृक्षवाले “ वार ! और नागकेसरवाले “ भद्र ” तथा ४ सिंह ' कह्लाये । पंचस्तृप्यनिवासादुपागता येडनगारिणस्तेषु । कॉश्रित्सेनामिख्यान्कश्रिद्धद्राभिधानकरोत्‌ ॥ ९३ ॥ ये शाल्मलीमहादुममूलागतयो भ्युपागतास्तेषु । कॉधिह्ुणघरसंज्ञान्काँश्विद्रुताह्ृयानकरोत्‌ ॥ ९४ ॥ ये खण्डकेसरद्ुममूलान्मुनयः समगतास्तेषु । काँश्वित्सिहाभिख्यान्कॉथिञ्न्द्राहयानकरोत्‌ ॥ ९५ ॥ » अन्ये जगुगृहायाःविनिर्गता नन्दिनों महात्मान: । देवाश्वाशोकवनात्पंचस्तृप्यास्तत्तः सेन: ॥ ९७ ॥ विपुलतरशाल्मर्लादुममुलगतावासवासिनों वीराः । भद्राश्वस्वण्डकेसरतरुमूलानिवासिनों जाता: ॥ ९८ ॥ गृहायां वापितो ज्येष्ठो दवितीयोऽशोकवाेकात्‌ । निर्याती नन्दिदेवाभिधानावाद्यावनुक्रमात्‌॥ ९९ ॥ पचस्तूष्यास्तु सेनानां वीराणां शात्मलीुमः । सण्डकेसरनामा च भद्रः सिंहोऽस्य सम्मतः ॥ १००॥




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