दैवी सम्पदाएँ | Daivi Sampadayen
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
60
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ ९५ )
में उपयुक्त स्थान दैत ই। यदि संच पू! जाय तो निखिलं
विश्व की समस्त यतिविधि दान” फे 'सतांगुणी नियेम के
ध्राधार पर चल रही द । परमेश्वर ने कुछ देखा करव বক্তা ই
कि “पहले दो तव मिलेगा” । जो कोई লা तत्त्व अयने द/नको
प्रक्रियं। चन्द कंर देता है, वही नेष्टे दो जाता है, विकृत एवं
कुरूप हो जीवन-युद्ध में घराशायों हों जाता हैं। संखार की
किसी भी जड़ चेतन, यहां तक कि मन्द् वद्धि पशु जाति तकं
देखिए । स्त्र दान का खंड निधन काये कर रह है ।
यदि कुएं अल दांत देना बन्द् कर दे, खेत अन््न देना
रोक दे, पेड़ फ पत्तिं छाल देवा चन्द् करदे, हवा जल,घर्प
प्राय, भस इत्यादि पशु अपनी सेवाएं रोक दें, तो समस्त
पष्टि का संचालन बन्द समझ्िये । माता पिता वालक के लिए
ब्ात्म छुख देना बनन््द् कर दें, तो चेतन जीचों का बीज ही मिट '
जायगा | और सदसे बड़ा दानी परमेश्वर तो हर पल इर घडी
हमें कुछ न छुछ प्रदान करता रहता है । उसकी रचना में दान॑
तच्य अप्लुख है ।
दन फा श्रभिभाय क्या है? वह है सकीणृदासे छुटकारा
शात्म संयम का अभ्यास एवं दूसरे को खहायता की भावना
को उस्येजबा | दान करते समय हमारे মল मे यश प्राप्ते की
जरा. फल का आशा, या 'अंहकार की भावना नहीं: होनी
জাভিছ । दान तो स्वयं प्रसन्नता सुख एवं संतोष का दाता है ।
दान करना स्वयं एक आजन्द है | देते सम्रय हो संतोष की
उच्च खाध्विक दष्टि अन्त:रूरणु में उठती है बह इतनी महान
है कि कोर भी भौतिक सुख उसफी ठुलना नहीं कर सकता ।
पेखा, धन, तथा वस्तुएं सबके काम' में आनी चाहिए ।
पदि आपके पास व्यर्थ पड़ा है तोडन्हें मुक्त करठ से दूसरे
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