हिंदी कविता कुछ विचार | Hindi Kavita Kuch Vichar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी कविता कुछ विचार बाद में किसी ने राजस्थानी का रंग चढ़ाया है । इधर हाछ ही में अछादाबाद्‌ विश्वविद्यालय के दिन्दी विभाग के रीडर डा० माताप्रसाद गुप्त ने बीसछदेवरासों की कई इस्तछिखित प्रतियों के आधार पर उसका एक सुन्दर सम्पादित संस्करण बीसछदेव रास के नाम से हिन्दी परिषद विदवविद्याउय प्रयाग से प्रकाशित करवाया है । शुप्तजी ने बीसलदेव रास मे एक सौ अट्टाइस छन्द रखे हैं तथा उनका विचार है कि इन १२८ छन्दों में कथा-निवांह भढी-भॉति हो जाता है यह अवश्य है कि कहीं-कहीं पर अस्पीक्ृत छन्दो मे से कोई कथा की पूर्णता अथवा उसमें अन्य प्रकार के चमत्कार छाने में सहायक हो सकते हैं किन्तु प्रक्षेपो का ठीक यही काये भी हुआ करता हे । इसमें कोई सन्देहह नद्दी कि नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित बीसछदेव रासो की अपेक्षा गुप्त जी के सम्पादकत्व में प्रकाशित बीसढदेव रास अधिक शुद्ध और वैज्ञानिक पद्धति पर है । शुप्त जी इन १२८ छन्दों को प्रामाणिक मानते है और उनका विचार है कि बीसछदेव रासो की रचना चौदहवी शताब्दी के उत्तराद्ध तक अवश्य हो गई होगी । इतना तो निश्चित ही है कि सरपति नाल्ड बीसछदेव का समसासयिक- कवि नहीं हे और चूँकि राजस्थानी साहित्य मे स्वदा ही हमें वतेमान कालिक क्रियाओं का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है तथा किसी भी कृति में बतेमानकाछिक क्रियाओ को प्रयुक्त करने का यह अथ नहीं होता कि. वह समकालीन कृति ही हो अतः बीसढदेव रासो मे प्रयुक्त व्तेमान- काढिक क्रियाओं को देख कर हमें श्रमोनन्‍्मीठित न होना चाहिए परन्तु साथ ही श्री अगरचन्द नाहदटा और श्री मोतीलाछ मेनारिया की मॉँति हम उसे सोंठहर्वी शताब्दी की रचना मानने के पक्ष में भी नहीं हैं क्योकि नाहदटा जी ने तर्कों द्वारा उस अन्थ की जो बहुत सी ऐतिहासिक ख़ुटियोँ सिद्ध की है उनमें से अधिकांश का खण्डन तो ओश्या जी कर चुके है तथा उन्होने बहुत से ऐतिहासिक व्यक्तियों का काल निर्धारण करते हुए रासो की ऐतिहासिकता पर भी प्रकाश डाला है और हम थी बीसछदेव रासो की ऐतिहासिकता पर विचार करते समय इस विषय पर अपने तके प्रस्तुत करेंगे । यहीं यह भी स्मरण रद्दना चाहिए कि नरपति नाल्हद ने बीसछदेव रासो का निर्माण काठ अपनी कृति के प्रारम्भ में ही दे दिया है अतः थी अगरचन्द नाहटा ने एक तके यह भी प्रस्तुत किया है कि इस प्रकार




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